स्लॉथ जिस पेड़ पर रहते हैं उसी के पत्ते खाकर अपना पेट भरते हैं 40 वर्ष के अपने जीवन में यह केवल 8 पेड़ों को बदलते हैं।
बाघ की मूंछें हवा मे हुए कंपन को भाप लेती हैं जिससे उसे शिकार की सही स्थिति का पता चल जाता है, और अंधेरे में रास्ता ढूंढने में बाघ को मदद कर मिलती है।
बाघ मौके के अनुसार अपनी आवाज बदलता रहता है बाघ का गर्जना की आवाज 3 किलोमीटर दूर से भी सुनी जा सकती है।
बाघ हवा की वजह से पत्तों के हिलने और शिकार की वजह से झाड़ियों के हिलने से हुई आवाज में अंतर को पहचान सकता है।
बाघ के दोनों कान बाहर की आवाजों को अच्छे से सुनने के लिए अलग-अलग दिशाओं में बहुत ज्यादा घूम सकते हैं।
छिपकली जैसे जानवर किसी खास मौसम में लंबी गहरी नींद में चले जाते हैं ।
चील बाज और गिद्ध हम से 4 गुना ज्यादा देख सकते हैं।
ज्यादातर पक्षियों की आंखें उनके सिर के दोनों तरफ होती हैं
पक्षी एक ही समय में दो अलग-अलग चीजों में नजर रख सकते हैं।
जब यह बिल्कुल सामने देखते हैं, तब इनकी दोनों आंखें एक ही चीज पर होती हैं।
ज्यादातर पक्षियों की आंखों की पुतली घूम नहीं सकती , वे अपनी गर्दन हिलाकर या घुमा कर ही आसपास की चीजों को देखते हैं।
पक्षी जब दोनों आंखें एक ही चीज पर केंद्रित करते हैं, तो उन्हें चीज की दूरी का एहसास होता है।
जब पक्षी अपनी दोनों आंखें अलग-अलग चीजों पर केंद्रित करते हैं, तो उनका देखने का दायरा बढ़ जाता है।
चीटियां चलते समय जमीन पर कुछ ऐसा पदार्थ छोड़ती हैं, जिसे सूंघकर पीछे आने वाली चीटियों को रास्ता मिल जाता है।
मच्छर हमारे शरीर की गंध खासकर पैरों के तलवे की गंध को सूंघकर हमें ढूंढ लेता है। मच्छर हमारे शरीर की गर्मी से भी हमें ढूंढ लेता है।
सड़कों पर कुत्तों की भी अपनी जगह बटी होती है, एक कुत्ता दूसरे कुत्ते के मल मूत्र की गंध से जान लेता है कि उसके इलाके में बाहर कुत्ता आया था।
रेशम का कीड़ा अपनी मादा को उसकी गंध से कई किलोमीटर दूर से ही पहचान लेता है।
यह माना जाता है, कि दिन में जागने वाले जानवर कुछ रंग देख पाते हैं। और रात में जागने वाले जानवर हर चीज को सफेद और काली ही देख पाते हैं।
सांप के बाहरी कान नहीं होते हैं, वह जमीन पर हुए कंपन को ही सुनता है।
हमारे देश में पाए जाने वाले सांपो में केवल 4 तरह के सांप ही जहरीले होते हैं और उनके नाम नाग, करैत, दुबोइया, भफाई।
सांप जब किसी को काटते हैं तो उनके दो खोखले जहर वाले दांत से दूसरे व्यक्ति या जानवर के शरीर में चला जाता है। सांप के द्वारा काटे हुए व्यक्ति को सीरम नाम की दवा दी जाती है, जो सांप के जहर से ही बनाई जाती है।
जंगल में ऊंचे पेड़ पर बैठा लंगूर पास आती किसी मुसीबत जैसे शेर या चीता को देखकर एक खास आवाज निकालता है जिससे उनके साथियों को तक संदेश पहुंच जाता है ।
मछलियां खतरों की चेतावनी के लिए एक दूसरे को बिजली की तरंगों से जानकारी पहुंचाती हैं।
पिचर प्लांट को नेपेन्थीज भी कहते हैं।
पिचर प्लांट एक विशेष प्रकार की गंध को को छोड़कर कीड़ों को आकर्षित करता है, और फिर उनका शिकार कर लेता है।
कुछ जानवर तूफान या भूकंप आने से कुछ समय पहले ही अजीब हरकतें करने लगते हैं, जंगलों में रहने वाले लोग समझ जाते हैं कि कुछ अनहोनी होने वाली है।
सन 2004 मैं दिसंबर के माह में सुनामी से कुछ समय पहले जानवरों के अजीब व्यवहार और उनके द्वारा दी गई चेतावनी भरी आवाजों को अंडमान की खास आदिवासी जनजाति समझ गई, और उन्होंने वह इलाका खाली कर दिया इस प्रकार यह लोग सुनामी से बच गए।
डॉल्फिन भी अलग अलग तरह की आवाजें निकालती है और एक दूसरे से बात करती है | वैज्ञानिकों का मानना है कि कई जानवरों की अपनी पूरी भाषा है।
धरातल एवं जगह और देश की जानकारी -
जिम कार्बेट नेशनल पार्क उत्तराखंड में है |
घना पक्षी विहार राजस्थान के भरतपुर जिले में है।
उड़ीसा के कालाहांडी जिले में सबसे अधिक चावल पैदा किया जाता है।
आत्रेयपुरम जिला आंध्रप्रदेश प्रदेश में है।
सबसे ज्यादा भारत में सबसे ज्यादा चावल का उत्पादन उड़ीसा के कालाहांडी जिले में होता है।
हरी मिर्च, टमाटर और आलू दक्षिण अमेरिका से आया।
पत्ता गोभी और मटर यूरोप से आये।
कॉफी बींस और भिंडी अफ्रीका से आए।
गड़ीसर झील राजस्थान के जैसलमेर में है।
यहां उस घाट पर एक स्कूल हुआ करता था।
जैसलमेर में 9 झीलें थी जो एक बड़ी झील से पानी बरसने पर भारी जाती थीं।
जैसलमेर में बहुत कम बारिश होती है , साल में एक या दो बार और कभी कभी तो साल में एक भी बार बारिश नही होती है।
जैसलमेर में जब झीलें पानी से भर जाती थीं, तो लोग उत्सव मनाते थे और उनकी पूजा करते थे जैसे उत्तराखंड में नई दुल्हन की पूजा होती है।
मृत सागर का पानी सबसे ज्यादा खारा होता है।
मृत सागर समुद्र तल से 418 मीटर नीचे, दुनिया का सबसे निचला बिंदु कहा जाने वाला सागर है। इसे खारे पानी की सबसे निचली झील भी कहा जाता है।
मृत सागर के 1 लीटर पानी में 300 ग्राम तक नमक मिल सकता है।
मृत सागर के पानी का घनत्व ज्यादा होने के कारण लोग उसमें डूबते नहीं है , और उसकी सतह पर तैरते रहते हैं।
बीमारियाँ एवं औसधी -
मलेरिया एक कोशिका वाले पैरासाइट्स (परजीवी) से होता है जिसे प्लाज्मोडियम कहते हैं।
मलेरिया के परजीवी का वाहक मादा एनाफिलीज मच्छर है। जिसके पंख गहरे और धब्बेदार होते हैं।
मलेरिया में बुखार कंपकंपी और ठंड के साथ आता है।
मलेरिया की दवा सिनकोना पेड़ की छाल से बनाई जाती है।
लोहा या आयरन हमें गुड, आंवला, और बहुत सी हरे पत्ते वाली सब्जियों से मिलता है।
मक्खियों से कई तरह की बीमारियां होती हैं।
Algae या शैवाल एक तरह जलीय पौधा है, जो बरसात के मौसम में होता है।
रोनॉल रॉस ने सबसे पहले बताया कि मलेरिया मच्छरों से फैलता है।
अन्य महत्वपूर्ण जानकारी -
सपेरों को कॉल बेलिया भी कहते हैं।
नाग गुंफन ऐसे डिजाइन, रंगोली, कढ़ाई और दीवारों को सजाने के लिए सौराष्ट्र गुजरात और दक्षिण भारत में प्रयोग किए जाते हैं।
कालबेलिया नाच में सांप जैसी मुद्राएं होती हैं।
तुम्बा, खंजरी, बीन आदि सूखी लौकी से बनाए जाते हैं।
दूध - एक कटोरी में डाल कर पानी के बर्तन में रखते हैं ताकि कुछ उसमे जा न सके |
पके हुए चावल - गीले कपड़ों में लपेट कर सकते हैं
हरा धनिया - उबालतें हैं
प्याज लहसुन -खुले में रखते हैं और नमी से बचाकर
भारत के विभिन्न प्रांतों में आम पापड़ को अलग-अलग नाम से पहचाना और पुकारा जाता रहा है। हिंदी में अमावट ’, बंगाली में आमसोट्टो ’, असम में ‘आमटा ’, तेलुगु में ‘मामिडी तंद्रा ’, मराठी में ‘अंबावड़ी
स्वाद और पाचन के बारे में -
हमारे पेट का तापमान 30 डिग्री सेंटीग्रेड होता है।
हमारे पेट में पाए जाने वाला रस अमली होता है।
उड़ीसा में अधिक चावल उत्पादन के बावजूद भी वहां के बहुत से लोग गरीब है।
कांच के जार या बोतल में अचार रखने से पहले अच्छी तरह से सुखाया जाता है ताकि उसमें कोई नमी ना रह जाए वरना अचार खराब हो जाएगा।
वेल्क्रो (वेल्क्रो सैंडल में खुरदरा सा हिस्सा है, जिसको को पहनने के बाद चिपकाया जाता है) का अविष्कार जॉर्ज दे मेस्त्रल ने 1948 में किया था। उनको यह विचार कांटो वाले बीज से आया था।
पौधे घूम नहीं सकते एक बार वे एक ही जगह पर रहते हैं। परंतु उनके बीज लंबी यात्रा करते हैं।
पौधों के बीज कपड़ों में चिपक कर और पानी में बहकर भी यात्रा करते हैं।
सोयाबीन की फली पकने पर फूट जाती हैं और उनसे सोयाबीन के बीज निकल आते हैं।
कुएँ और झीलों के सूखने के कारण Ncert बुक के द्वारा -
पानी को मोटर से निकाला जा रहा है जिससे जमीन का पानी कम होता जा रहा है।
अब झीलें भी कम हो रही हैं, जहां पहले वर्षा का पानी इकट्ठा हो जाता था।
पेड़ों के चारों तरफ और पार्कों में मिट्टी को सीमेंट से ढक दिया जा रहा है , जिससे बर्षा का पानी जमीन में नहीं पहुंच पाता है।
1986 में जोधपुर और उसके आस-पास बारिश ही नहीं हुई। फिर लोगों को ध्यान आया कि वहाँ एक पुराना कुआँ या बाउली है।
लोगों ने पैसे इकट्ठा किया और लगभग 200 ट्रक कूड़ा निकाला गया। और लोगों को वहाँ पानी मिला।
प्यासे जोधपुर को बाउली से पानी मिला। कुछ सालों बाद वहां अच्छी वर्षा हुई और बाउली को लोग फिर भूल गए।
अलबरूनी हजारों साल पहले उज्बेकिस्तान से भारत आया था।
अलबरूनी ने भारत में आकर सभी चीजों को ध्यान से समझा और जाना कि यहां के लोग तालाब बनाने की कला जानते हैं, और वह बड़े-बड़े पत्थर और लोहे के चबूतरे झीलों के किनारों पर बनाते हैं।
अलबरूनी ने सारी बात को विस्तृत रूप से लिखा यह सारी बातें 1973 में मिली एक स्टांप पर लिखी थी, जो अलबरूनी के जन्म के 1000 साल बाद मिला था।
1930 में दांडी मार्च का आयोजन किया गया यह आयोजन इसलिए था, क्योंकि भारतीयों को समुद्र से नमक बनाने की इजाजत नहीं थी।
दांडी यात्रा अहमदाबाद से गुजरात के समुद्रों के किनारों तक चली।
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